में कहता रहा की पता नह कुछ बात हैं पर कभी अपने मनन की बात ही नही समझ पाया। मुझे चाहिए तोह यह था कि एकांत में बैठू और समझू मुझे क्या चाहिए और में किस चीज़ के पीछे भाग रहा हूँ। पर मैंने बिल्कुल उल्टा किया। यहाँ पर आने कि आप-धापी में में यह तक भूल गया कि में किस कुए में जा रहा हूँ। अब आधा डूबा आधा तैरता हुआ अजीब सा अहसास हो रहा हैं।